इतिहास

विद्या भारती संगठन

बालक ही हमारी आशाओं का केंद्र है. वही हमारे देशधर्म एवं संस्कृति का रक्षक है. उसके व्यक्तित्व के विकास में हमारी संस्कृति एवं सभ्यता का विकास निहित है. आज का बालक ही कल का कर्णधार है. बालक का नाता भूमि एवं पूर्वजों से जोड़नायह शिक्षा का सीधासरल तथा सुस्पस्ट लक्ष्य है. शिक्षा और संस्कार द्वारा हमें बालक का सर्वांगीण विकास करना है|

 प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर 

बस यही स्वप्न लेकर इस शिक्षा क्षेत्र को जीवन साधना समझकर 1952 मेंसंघ प्रेरणा से कुछ निष्ठावान लोग इस पुनीत कार्य में जुट गए. राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में लगे लोगों ने नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए "सरस्वती शिशु मंदिर" की आधारशिला गोरखपुर में पांच रुपये मासिक किराये के भवन में पक्की बाग़ में रखकर प्रथम शिशु मंदिर की स्थापना से श्रीगणेश किया. इससे पूर्व कुरुक्षेत्र में गीता विद्यालय की स्थापना 1946 में हो चुकी थी. मन की आस्थाह्रदय का विकास,निश्चय की अडिगता तथा कल्पित स्वप्न को मन में लेकर कार्यकर्ताओं के द्वारा अपने विद्यालयों का नामविचार कर "सरस्वती शिशु मंदिर" रखा गया. उन्हीं की साधनातपस्यापरिश्रम व संबल के परिणामस्वरुप स्थान-स्थान पर "सरस्वती शिशु मंदिर" स्थापित होने लगे|
उत्तर प्रदेश में शिशु मंदिरों के संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी. इनके मार्गदर्शन एवं समुचित विकास के लिए 1958 में शिशु शिक्षा प्रबंध समिति नाम से प्रदेश समिति का गठन किया गया. सरस्वती शिशु मंदिरों को सुशिक्षा एवं सद्संस्कारों के केन्द्रों के रूप में समाज में प्रतिष्ठा एवं लोकप्रियता प्राप्त होने लगी. अन्य प्रदेशों में भी जब विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी तो उन प्रदेशों में भी प्रदेश समितियों का गठन हुआ. पंजाब एवं चंडीगढ़ में सर्वहितकारी शिक्षा समितिहरियाणा में हिन्दू शिक्षा समिति बनी. इसी प्रयत्न ने1977 में अखिल भारतीय स्वरुप लिया और विद्या भारती संस्था का प्रादुर्भाव दिल्ली में हुआ. सभी प्रदेश समितियां विद्या भारती से सम्बद्ध हो गईं|

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इतिहास

विद्यालय का इतिहास

  • 1978 में गढ़ा शिक्षा समिति के माध्यम से गंगानगर गढ़ा में सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की गई
  • 12.12.1979 को विद्यालय की स्थापना हुई जिसका पंजीयन क्र.8578 है |
  • 1978 में मात्र 20 भैया बहिनों को लेकर गंगानगर गढ़ा के क्लब के भवन में शिशु मंदिर का बीजारोपण किया गया जो आज विशाल वटवृक्ष के रुप में आपके सामने है |
  • 1981-82 में भवन निर्माण हेतु 4 कक्षों की नींव रखी गई जो वर्तमान में 38 कक्ष एवं 1 हॉल का आकर्षण रुप ले चुका है |
  • सफलता से उत्साहित होकर प्राथमिक शाला को 1985 में पूर्व माध्यमिक शाला, 1988 में माध्यमिक शाला और 1990 में उच्चतर माध्यमिक शाला के रुप में विकसित किया गया |
  • गढ़ा शिक्षा समिति केवल गंगानगर तक सीमित नही रही अपितु 1984 में बरगी हिल्स में प्राथमिक शाला की स्थापना की गई जो अब माध्यमिक शाला के रुप में कार्यरत है
  • विस्तार योजना जारी रखते हुऐ 1990 में आदर्श नगर ग्वारीघाट एवं पावरग्रिड सूखा पाटन रोड में प्राथमिक शालाऐं प्रारम्भ की गई |

इतिहास

स्वाधीनता प्राप्ति के उपरांत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परमपूज्यनीय माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर गुरूजी ने भारतीय वातावरण के अनुकूल संस्कारक्षम शिक्षण पद्धति विकसित करने का विचार किया। इस हेतु 1952 ई में गोरखपुर में प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना हुई। मध्यप्रदेश में रीवा नगर में सन 1959 ई में प्रदेश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर प्रारंभ किया गया ।प्रबंधन एवं मार्गदर्शन की दृष्टि से 1977 ई में विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान नई दिल्ली की स्थापना की गई एवं महाकौशल प्रांत में सरस्वती शिक्षा परिषद महाकौशल प्रांत जबलपुर की स्थापना की गई।

डॉ हरिसिंह गौर जैसे महानशिक्षाविद की जन्मभूमि एवं लाखा बंजारा की त्यागभूमि सागर नगर के सिविल लाईंस , रमझिरिया क्षेत्र में भी एक विद्यालय प्रारंभ करने की योजना बनाई गई। प्रो प्रभाकर राव पाटणकर , श्री अरूण जी पलनिटकर , प्रो . अविनाश जी अडोणी एवं श्री नचिकेता भावे ने विचार विमर्ष कर जुलाई 1993 ई में सिविल लाइंस क्षेत्र में रमझिरिया सरस्वती शिशु मंदिर सिविल लाइन सागर की नींव डाली । विद्यालय के प्रबंधन एवं संचालन हेतु राष्ट्रऋषि गुरू गोलवलकर गुरूजी के नाम पर माधव शिक्षा समिति की स्थापना 29 अक्टूबर सन 1993 ई. में की गई।

प्रारम्भ में विद्यालय में 03 कक्षाएं एलकेजी , यू के जी एवं प्रथम प्रारंभ की गई। जो प्रतिवर्ष कर्मश: एक कक्षा वृद्धि होते हुए आज हाईस्कूल की कक्षा 10 वीं तक संचालित है। इस संस्था के प्रथम नियमित प्रधानाचार्य श्री नरेन्द्र जी ठाकरे बने एवं प्रथम नियमित आचार्य वर्तमान प्राचार्य श्री सुरेन्द्र जी जैन बने । अपने उत्कृष्ट षिक्षण के कारण यह विद्याभारती द्वारा घोषित ‘आदर्ष विद्यालय’ है । विद्यालय प्रबंध समिति ने 1996 ई में विश्वविद्यालय की तलहटी में स्थित शासकीय पालीटेक्निक कालेज के सामने रमझिरिया क्षेत्र में भूमिक्रय कर विशाल विद्यालय भवन का निर्माण कराया । 1993 ई. से ही शिक्षा के क्षेत्र में नए कीर्तिमान रचता हुआ रमझिरिया प्रकल्प एक शैक्षिक शोध संस्थान जैसा विकसित हुआ है ।

वर्ष 1999 ई की प्राथमिक प्रमाण पत्र परीक्षा की जिला प्रावीण्य सूची में कक्षा 5 वी में अध्ययनरत 36 भैया - बहिनों में से 17 भैया बहिन ने प्रावीण्य सूची में स्थान अर्जित कर शिक्षा के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। तब से प्रतिवर्ष कक्षा 5 वी एवं 8वीं की प्रावीण्य सूची में इस संस्था के भैया बहिनों ने लगातार अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई।हाईस्कूल परीक्षा परिणाम 2012 (विद्यालय में कक्षा 10 वीं का प्रथम बैच ) का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहा , कक्षा में अध्ययनरत 53 विद्यार्थियों में से 49 प्रथम श्रेणी में,एवं शेष 04 द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए , इनमें से 29 भैया बहिनों ने 75 प्रतिशत से अधिक अंक अर्जित किए ।

शारीरिक , खेलकूद , बौद्धिक ,विज्ञान मेला ,विज्ञान माडल्स ,आचार्य शोध पत्र जैसी विधाओं में इस विद्यालय के भैया बहिनों एवं आचार्यों का सतत गौरवशाली परिणाम रहा है। प्रतिवर्ष अखिल भारतीय स्तर की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में विद्यालय के भैया बहिनों का सराहनीय प्रदर्शन रहता है।

शिक्षण हेतु विद्यालय में निरंतर शिक्षण शोध कार्यशालाएं संचालित रहती है। विद्यालय के सभी षिक्षक कम्प्यूटर शिक्षण गतिविधि आधारित शिक्षण ,एवं क्रिया आधारित शिक्षण में प्रषिक्षित है।

संस्था में क्रीड़ा उद्यान , साइंस पार्क , 60 कम्प्यूटरों से युक्त कम्प्यूटर प्रयोगषाला , मल्टीमीडिया एजुकेषन सिस्टम ,गणित ,भौतिकी , रसायनषास्त्र , जीवविज्ञान की विषयवार पृथक - पृथक प्रयोगशालाएं हैं । शिशु कक्षाओं के उत्तम शिक्षण हेतु उनके कक्षा कक्ष में ही शिशु वाटिका एवं प्रयोगषाला स्थापित की गई है।